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छन्द:- सुखदा
मापनी- मात्रा 22, (यति 12,10, चरणांत गुरु वाचिक)
मापनी- मात्रा 22, (यति 12,10, चरणांत गुरु वाचिक)
जो
आया तेरे दर, बुद्धि उसे भरती.
हस्तकमल
श्वेताम्बर, पुस्तक कलम धरे,
श्वेतपद्म
आसन पर, तेरी छवि सजती.
सहज
स्वभाव बनाती, वाणी मधुर बने
जीवन
में वाणी की, रस धारा बहती.
उच्चारे
वेदध्वनि, शंखोच्चार करे,
वाणी
सिद्ध बनाती, कहते संत जती.
जो
निस दिन माँ तेरी, भक्ति करे मन से,
वीणापाणि
सदा हित, तू सबका करती.
गणगणाधिपति
सारे, देव तुझे ध्यावें,
बिन
तेरे वागीशा, चले नहीं जगती.
आरती’
करूँ बिराजो, माँ सबके मन में,
सकल
मनोरथ पूरे, करना है विनती.
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