गीतिका
अभूतपूर्व शिव-शक्ति का, श्रीशिव योग हैं .
सृजन-संहार का इक शाश्वत, शिव उद्योग हैं.
शिल्प
विधान- चौपाई+9, अंत 212.
पदांत-
हैं
समांत-
ओग
अभूतपूर्व शिव-शक्ति का, श्रीशिव योग हैं .
सृजन-संहार का इक शाश्वत, शिव उद्योग हैं.
सभी
भाषाओं के भी उद्गम,
हैं नादब्रह्म जो,
दशावतारी भी हैं वे कैसा, शिव संयोग हैं.
दशावतारी भी हैं वे कैसा, शिव संयोग हैं.
शंकराचार्य
भजते ‘शिवस्य हृदयं विष्णु’ को,
निराकार-साकार अनोखा, शिव सुयोग हैं.
निराकार-साकार अनोखा, शिव सुयोग हैं.
अश्वत्थामा, कालभैरव,
दुर्वासा, वृषभ,
नंदी, पिप्पलाद ये शिवांश, शिव आभोग हैं.
नंदी, पिप्पलाद ये शिवांश, शिव आभोग हैं.
विश्वनाथ, विश्वगुरु
नटराज, पशुपतिनाथ का,
जीवन दर्शन आदि आनंद, शिव प्रयोग हैं.
जीवन दर्शन आदि आनंद, शिव प्रयोग हैं.
प्रकट
हुए शिवलिंग रूप में,
वे शिवरात्रि को,
जीवन सुदर्शन तभी अप्रतिम, शिव नियोग हैं.
जीवन सुदर्शन तभी अप्रतिम, शिव नियोग हैं.
‘आकुल’ नित्य भजें बैरागी, शिवा
गृहस्थ को,
वे सर्वव्याप्त अशोकारिष्ट, शिव सहयोग हैं.
.वे सर्वव्याप्त अशोकारिष्ट, शिव सहयोग हैं.
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