गीतिका
छंद-
ताटंक (16, 14, अंत 3 गुरु से)
पदांत-
है
समांत-
आना
कहाँ
नहीं वर्चस्व नारी’ का, अब यह भी जग जाना है.
अंतरिक्ष
में पहुँची’ चाँद पर, अब परचम फहराना है.
राजनीति
हो, या तकनीकी, सेना हो या विद्यालय,
आज
चिकित्सा, न्याय व्यवस्था में भी उसको माना है्.
घर
के उत्तरदायित्वों में, कभी नहीं वह पीछे थी,
कर्तव्यों,
अधिकारों में अब, अग्रिम हो, यह ठाना है.
अवतारों,
ने देवों ने भी समय समय पर रूप धरा,
शक्ति
रूप धारा नारी ने, फिर उसको दुहराना है.
माँ
जैसी कोमल भी है वह, घर की है आधारशिला,
पन्ना,
जोधा, लक्ष्मी रानी, का भी पहना बाना है.
आज
पुन: आवाज उठाती, नारी का संवाद सुनो,
समय
आज ललकार रहा बन, दुर्गा भय दिखलाना है.
शिक्षा,
आत्मसुरक्षा नारी, को अब शिखर चढ़ाएगी,
शिक्षित
हो हर नारी उसको, यह कर्तव्य निभाना है.
सब
कुरीतियाँ दूर हों’ नारी, भोग नहीं अब योग बने,
नारी
पर न कुदृष्टि पड़े अब, वह संसार बनाना है.
चहूँ
दिशा पहुँचेगी उसकी, अब हुंकार सुनो ‘आकुल’
राह
खुली सरहद की दुश्मन, को औकात बताना है.
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