छंद- वाचिक स्रग्विणी (212 212 212 212)
पदांत-
चाहिए
प्यार
करना अगर है जिगर चाहिए.
पार
करना हो दरिया हुनर चाहिए.
हौसले
ही न काफी हैं इस राह में,
ज़िंदगी
को ख़ुदा की महर चाहिए.
जो
चुनी राह तुमने है काँटों भरी,
हर
क़दम दुश्मनों की ख़बर चाहिए.
है
मुहब्बत की परवाज़ लंबी तभी,
आशियाँ
को मुकम्मल शजर चाहिए.
ये
जमाना परखता है सालों तलक,
फन
ज़माना झुके इस क़दर चाहिए.
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