22 फ़रवरी 2018

डरना नहीं, बढ़ते रहो (गीतिका)

छंद- हरिगीतिका
मापनी- 2212 2212 2212 2212
पदांत- रहो
समांत- अते


डरना नहीं, बढ़ते रहो, ऊँचाइयाँ, चढ़ते रहो.
दो दिन की’ है, कठिनाइयाँ, हँस के इन्हें, सहते रहो.

धरती नहीं, क्या चल रही, क्या सह रहे, मौसम नहीं.
जीवन है’ इक, बहती नदी, नदिया सा’ तुम, बहते रहो.

है आज जो, वातावरण, इंसान की, ही खोज है,
स्वच्छंद हो, परवाज़ पक्षी की तरह, उड़ते रहो.

तुम जैसे’ ही, इंसान ने ,उड़ के फ़लक, को छू लिया,
तुम वक़्त को, मुट्ठी में’ भर, सँग वक़्त के, चलते रहो.

'आकुल' यहाँ, आए हो’ करके ही है’ जाना कुछ अलग,
कुछ कर गुजरने को जिगर, फ़ौलाद का, करते रहो.

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