8 मई 2019

मत छेड़ो उम्र, आग, धरती (गीतिका)

छंद- पदपादाकुलक
पदांत- है
समांत- अती


यौवन में उम्र बहकती है।
छेड़ो तो आग भड़कती है।1

सागर के डर से चाँद छिपे,
पूनम की रात पिघलती है।2

मत ज्वार बीच सागर उतरो,
साहिल पर मौत मचलती है।3

बिजली चमके, मेघा गरजे,
बरखा से हवा बिगड़ती है।4

जब तुमुल सरीखी हवा चले,
धरती भी कहीं दहलती है।5

तब वृक्ष गिरें, चंचल चपला
बन काल किसी पर पड़ती है।6

मत छेड़ो उम्र, आग, धरती,
अपना इतिहास बदलती है।7

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