(आदरणीय
आचार्य संजीव सलिल जी को सादर नमन करते हुए यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं उनके
व्यक्तित्व व कृतित्व से अभिभूत हूँ. मेरी नवगीत कृति ‘जब से मन की नाव चली’
और गीतिका शतक ‘चलो प्रेम का दूर
क्षितिज तक पहुँचायें संदेश’’ की अप्रतिम भूमिका के लिए मैं सदैव उनका कृतज्ञ
रहूँगा. उन पर कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखाना है, फिर भी मेरी लेखनी से मैं
जितना लिख पाया समर्पित है-)
गीतिका
छंद- मरहट्ठा माधवी
विधान- 16, 13 (चौपाई दोहा
का विषम चरण)
पदांत- है
छंद
प्रवीण, गीत-नवगीतों, काव्य विधा में धार है.
गद्य
पद्य में सहज सरल हैं, भाषा पर अधिकार है.
मेरी
कृतियों पर सम्पादन, लिखीं भूमिकायें अप्रतिम,
समालोचना,
समाधान में, लेखन भी दमदार है.
हैं
साहित्य सुधा रस सागर, निर्मल सलिल सुजान से,
संरक्षण
देता, हितकारी, इतना हृदय उदार है.
माँ वाणी
मुख पर राजित है, होते सिद्ध मनोरथ ज्यों,
पंच
वृक्ष नंदनकानन में, कल्पवृक्ष मंदार है.
विधि-विधान का जो अकाट्य देते प्रमाण भी दृढता से,
’आकुल’
ऐसे उद्भट कवि को, साष्टांग नमस्कार है.
-डॉ.
गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
817,
महावीर नगर- 2, कोटा- (राजस्थान)
पिन-
324005 चलितांक- 7728824817.
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