छंद-
ताटंक
विधान-
30 मात्रा. 16, 14 पर यति अंत 3 गुरु से अनिवार्य
पदांत-
है
नहीं
अचानक हुआ यहाँ पर, कुदरत की यह माया है्.
इक
मौका बचपन को देने को, फिर डाला साया है.
शायद
ये ही बदलें इक दिन, तकदीरें इंसानों की,
अपने
मतलब से है जिसने, सत्पथ से भटकाया है.
दुनिया
में तो धर्म सिखाता, प्रेम और सौहार्द सदा,
पर
नफरत की आग जलाई, आँधी ने भड़काया है.
इसके
तले बैठ कर देखें, करता धर्म सदा छाया,
नहीं
सिखाता वैर-द्वेष बस, इसने तो अपनाया है.
नई
पौद से चल कर ‘आकुल’, दुनिया एक बसायें फिर,
कुदरत
का है हुआ इशारा, देना तो बस पाया* है.
*पाया-
बुनियाद
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