15 मई 2019

पानी ने संकट घेरा, धरती सूखी अकुलाई (गीतिका)

छंद- सखी/आँसू
विधान- 14 मात्रा चार चरण, चार चौकल, 
अंत गुरु से (दो गुरु सर्वश्रेष्‍ठ), लय पदपादाकुलक चौपाई की तरह.
अपदांत-0
समांत- आई.

पानी ने संकट घेरा. धरती सूखी अकुलाई.
हलचल भी मची हुई है, कैसे होगी भरपाई.

सूखे हैं ताल तलाई, पानी को सब तरसे हैं.
पाताल तोड़ कूएँ भी, लगते हैं जैसे खाई.

गृहणी को घर की चिंता, लेती वह ढूँढ़ कहीं से,
भागीरथ प्रयास ही से, गंगा धरती पर आई.

वन सघन बनें अब सारे, पथ पथ हरियाली छाये,
पानी है नहीं समस्या , रोकें हम व्यर्थ बहाई.

जल-संचयीकरण* का हो, अब खूब प्रचार घरों में,
जल एकत्रित वर्षा का, होता सदैव सुखदाई,

घर पर न कहीं हो पाये, सब कूएँ, कुंड बचायें,
इक दिन सब भर जायेंगे , करते हम रहें सफाई.

आयेगी फिर खुशहाली, घर घर में आकुलसोचो,
जलसे*, जल होगा तो ही, जल बिन जलना तय भाई.

*जल-संचयीकरण- वाटर हार्वेस्टिंग
*जलसे- पर्व, उत्‍सव, त्‍योहार आदि  

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