9 मई 2019

यदि राह नई चलना है (गीतिका)


छंद- राधेश्‍यामी चौपाई
पदांत- सखे
समांत- ईख

यदि राह नई चलना है ले, पहले पंछी से सीख सखे.
हर हाल रहा अपने दम पे, माँगी ना उसने भीख सखे.

कब उसने धन दौलत जोड़ी, कब कुनबे कहीं बनाये हैं,
कब रखी महत्‍वाकांक्षायें, कब माँगा कुछ भी चीख सखे.

पंछी के जैसे नीड़ बना, मत पाले ममता मोह कभी,
आते ही पंख छोड़ सब कुछ, उड़ जाते ऐसा दीख सखे.

सीमा इनसानों ने बाँधी, रहते पंछी स्‍वच्‍छंद सदा,
इसलिए धरा आकाश उन्‍हें, कब लगते गैर सरीख सखे,

पंछी कब गाँठ रखें तन में, मन भी निर्मल होता उनका,
ऐसा मीठा मन क्‍या रखना, तन पर गाँठें ज्‍यों ईख सखे.

दुश्‍मन पंछी के भी होते, प्रतिकार नहीं करते चल कर,
बैठाते हैं सिर पर तब ही , सिर चढ़ कर बोले लीख सखे

करते हैं प्रेम पखेरू भी, रहते हैं साथ निभे जब तक,
कब जोर जबरदस्‍ती करते, लिख ऐसी कुछ तारीख सखे.

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