पदपादाकुलक चौपाई
(राधेश्यामी)
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मात्रा पंक्ति रचित मुक्तक
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जब
से जीवन की शाम हुई, मैं समय नहीं बिसराता हूँ.
तड़के
उठ जाने से लेकर, सोने तक कलम चलाता हूँ.
धोना
खाना न्हाना सब कुछ, दिनचर्या से कर पाता हूँ.
घर
में हम ईन मीन दो हैं, कर लेते हैं जिससे जो हो,
जैसे
ही आयें भाव कहीं, झट उन पर कलम चलाता हूँ.
बस
इसीलिए मैं रोजाना, लिख पाता हूँ कविता,मुक्तक,
है
मुक्तक-लोक बना साथी,जिसके सँग मन बहलाता हूँ.
कहते
हैं जहाँ नहीं पहुँचे, रवि बैठा पाता हूँ कवि को.
बस
इसी प्रेरणा से ‘आकुल’, मैं लिख कर ऊर्जा पाता हूँ.
अति सुन्दर लिखा है । बधाई के पात्र हैं आप ।
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