स्वच्छंद गीतिका
पदांत- कीजिए
समांत- इत
हिंदी
आभूषण से माँ को, सुशोभित कीजिए.
माँ वाणी स्पर्श
से हिन्दी, आलोकित कीजिए.
हम कृतार्थ
हों जाएँ जो, उनका आशीष मिले,
सुमधुर राष्ट्रवाणी
से सब को, मोहित कीजिए.
सब मन-वचन-कर्म
से इसको, हर दिन व्यक्त करें,
अभिव्यक्ति
की है स्वतंत्रता, न तिरोहित कीजिए.
अब हिंदी
का ध्वज विराट, फहराना है नभ पर,
गंगा जल से’
अभिमंत्रित कर आरोहित कीजिए.
अवसर है,
इक जुट हो कर हिन्दी का घोष करें,
राष्ट्रवाणी
हो, संविधान संशोधित कीजिए.
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