24 सितंबर 2017

क्‍या है जिंदगी निरी (गीतिका)



छंद समानिका (21 21 21 2)

क्या है जिंदगी निरी.
ज्‍यों कपर्दिका गिरी.

दाँव कैसा भी पड़े,
दुश्‍मनों से हो घिरी.

मुश्किलों से जूझती
अंदरूनी’ बाहिरी.

देख कर लगे नहीं
है ग़ज़ल कि शाइरी

गीतिका सी’ जी निपट
जिंदगी तू’ लाहिरी.

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