एक जुलाहे ने रच डाली, मानवता की अमर कहानी.
ज्ञानाश्रयी निर्गुण शाखा की
धारा के वे भक्त कवि थे.
फैली कुप्रथा, कुरीतियों पर लिखने वाले सख्त कवि थे.
पंथों के थे नहिं विरुद्ध पर कर्म बिना गति कैसी, कहते,
जुड़े जमीं से नैसर्गिक प्रतिभा के वे अतिशयोक्त कवि थे.
फैली कुप्रथा, कुरीतियों पर लिखने वाले सख्त कवि थे.
पंथों के थे नहिं विरुद्ध पर कर्म बिना गति कैसी, कहते,
जुड़े जमीं से नैसर्गिक प्रतिभा के वे अतिशयोक्त कवि थे.
मानवता पर भारी दानवता की
कहते मुखर कहानी.
एक जुलाहे ने रच डाली .........''
एक जुलाहे ने रच डाली .........''
दोहे, सोरठे में
रच ‘साखी’, ‘सबद’ गान से करी साधना.
चौपाई में लिखी ‘रमैनी’, और दिया बीजक का बाना.
जब कबीर की बानी गूँजी, घर-घर में जाग्रति आई थी,
पीर, महंत, मठाधीशों, संतों ने तब उनको पहचाना.
चौपाई में लिखी ‘रमैनी’, और दिया बीजक का बाना.
जब कबीर की बानी गूँजी, घर-घर में जाग्रति आई थी,
पीर, महंत, मठाधीशों, संतों ने तब उनको पहचाना.
प्रेम भाव सर्वोपरि रख कर
लिक्खी ढाई अखर कहानी.
एक जुलाहे ने रच डाली ..........''
एक जुलाहे ने रच डाली ..........''
‘जोइ पीउ है, सोइ जीउ है’, यह
थी प्रेम अभिव्यक्ति असीमा.
दास कबीरा कह गए साधो, द्वेष देय विष धीमा-धीमा.
इतना प्रेम करो सबसे उसमें परमात्म दिखाई देगा,
देते चले प्रेम संदेशा, एक धर्म है राम-रहीमा.''
दास कबीरा कह गए साधो, द्वेष देय विष धीमा-धीमा.
इतना प्रेम करो सबसे उसमें परमात्म दिखाई देगा,
देते चले प्रेम संदेशा, एक धर्म है राम-रहीमा.''
एक जुलाहे ने रच डाली .........”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें