29 सितंबर 2017

तुम्‍हें मातु दुर्गे, नमन कर रहा हूँ (गीतिका)

छंद- वाचिक भुजंग प्रयात
मापनी- 122 122 122 122
पदांत- कर रहा हूँ
समांत- अन
( लय - न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे.)


अभी लौ लगा के, मनन कर रहा हूँ.
कहीं मन न भटके, भजन कर रहा हूँ.

न चिंतन, न मंथन, कभी कर सका मैं,
अभी तक कलुष को, वहन कर रहा हूँ.

सदा ही विवश था, कि कमजोर था मैं,
सहन ही किया है, सहन कर रहा हूँ.

बनाओ समर्थी, लड़ूँ मैं बदी से
समय की तरह मैं, गमन कर रहा हूँ.

मुझे ही पड़ी है, कहाँ इस प्रकृति की
करो माँ कृपा अब, हवन कर रहा हूँ.

मुझे है बनाया, बहुत बुद्धि दी पर,
हवाओं से उजड़ा, चमन कर रहा हूँ.

चलूँ मैं सुपथ राह ऐसी दिखाओ,
तुम्हेंं मातु दुर्गे, नमन कर रहा हूँ.

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