5 अक्तूबर 2018

जिये जा है दो दिन का मेला ये जीवन (गीतिका)

छंद- भुजंगप्रयात
मापनी 122 122 122 122
पदांत- ये’ जीवन
समांत- एला

जिये जा है’ दो दिन का’ मेला ये’ जीवन
दुखी ही रहा जिसने ठेला ये’ जीवन. 

दिये हैं इसे जीतने के कई ढब,
सुखी वो रहा जिसने खेला ये’ जीवन. 

हमेशा पुजे हैं यहाँ गुरु पुजारी,
हुआ आज उनका क्‍यों धेला ये’ जीवन. 

नियति है तुम्हारी तुम्‍हीं को है गढ़ना,
न गढ़ पाए’ देगा न हेला ये’ जीवन, 

न आते न ही खेद होता जहाँ में,
न होता ये’ मेला झमेला ये’ जीवन. 

जियोगे बदलने के आसार हैं दस,
करो कुछ न रह जाए’ ढेला ये’ जीवन  

न ‘आकुल’ न दुनिया, किसी की, न मानी,
समझदार ने तो न  झेला ये’ जीवन.

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