छंद- भुजंगप्रयात
मापनी 122 122 122 122
पदांत- ये’ जीवन
समांत- एला
जिये जा है’ दो दिन का’ मेला ये’ जीवन
मापनी 122 122 122 122
पदांत- ये’ जीवन
समांत- एला
जिये जा है’ दो दिन का’ मेला ये’ जीवन
सुखी वो रहा जिसने खेला ये’ जीवन.
हमेशा पुजे हैं यहाँ गुरु पुजारी,
हमेशा पुजे हैं यहाँ गुरु पुजारी,
हुआ आज उनका क्यों धेला ये’ जीवन.
नियति है तुम्हारी तुम्हीं को है गढ़ना,
नियति है तुम्हारी तुम्हीं को है गढ़ना,
न गढ़ पाए’ देगा न हेला ये’ जीवन,
न आते न ही खेद होता जहाँ में,
न आते न ही खेद होता जहाँ में,
न होता ये’ मेला झमेला ये’ जीवन.
जियोगे बदलने के आसार हैं दस,
जियोगे बदलने के आसार हैं दस,
करो कुछ न रह जाए’ ढेला ये’ जीवन
न ‘आकुल’ न दुनिया, किसी की, न मानी,
न ‘आकुल’ न दुनिया, किसी की, न मानी,
समझदार ने तो न झेला ये’ जीवन.
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