छंद- चौपई
पदांत- -
समांत- अर्ष
सुख-दुख आते, ज्यों अधिवर्ष.
आँधी तूफाँ, झेले बाढ़,
आती ऋतु फिर, भी प्रतिवर्ष.
काँटों को क्यों, समझे बोझ,
खिलते फूल गुलाब सहर्ष.
अटल है मृत्यु न हो भयभीत
क्यों हो खुश या करे विमर्ष.
होती हार कभी या जीत
कर
स्वीकार यही निष्कर्ष.
जीवन
है चलने का नाम,
रुकते
ही तय है अपकर्ष.
‘आकुल’
बनना तू कर्मण्य,
वर्ना
जीवन है दुर्द्धर्ष.
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