छंद- गगनांगना
विधान- 16, 9 अंत 212
पदांत- है
समांत- आन
सर्वधर्म समभाव जहाँ वह, हिन्दुस्तान है.
लोक नृत्य, संगीत, गीत जिसकी पहचान है.
धर्म कर्म शिक्षा के अनुपम, संस्कार
देता,
देश जहाँ हर वेश में' घूमे, हर इनसान है.
जलनिधि पाँव पखारे, हिमगिरि प्राचीर समान,
मातृभूमि भारत मेरी मुझ को अभिमान
है.
'अहिंसा परमोधर्म' सुनीति, गौरव बलिदान,
‘सत्यमेव जयते’ भारत का, वाक्य प्रधान है.
राष्ट्रीय गीत जहाँ गूँजता, वंदे मातरम्,
जन-गण-मन अधिनायक जय है, राष्ट्रिय गान है.
लोक परम्पराओं से बँधी, मानवता डोर
जहाँ गीत संगीत का एक, शास्त्र विधान है.
जहाँ पुण्य सलिलाओं के तट, बसते हैं तीर्थ,
दशावतारों की पुण्यभूमि, स्वर्ग समान है.
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