छंद- मनोरम
मापनी-
2122 2122
पदांत-
सहारा
समांत- ओ
वक्त पे दे
जो सहारा.
है असल में
वो सहारा.
आदमी ही
आदमी के,
काम आये तो
सहारा.
हाथ दे असहाय
को भी,
दर्द में
जो हो सहारा.
आजमा लो
मित्र को भी,
शत्रु का
भी लो सहारा.
वे मसीहा
है जो’ देते
बेसहारों
को सहारा.
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