10 दिसंबर 2018

विपदायें, अभाव, पीड़ा में, ना बीता हो बचपन. (गीतिका)





छंद- सार
विधान- 16, 12. वार्णिक भार वाचिक 22.
पदांत- हो बचपन
समांत- ईता

विपदायें, अभाव, पीड़ा में, ना बीता हो बचपन.
सुविधायें, सुख-समृद्धि से भी, ना रीता हो बचपन.

चोट समय पर खाकर बनता, है बिठूर ज्‍यों सोना,
हो पथभ्रष्ट न, संस्कारों में, ही जीता हो बचपन.

जीवन अनासक्ति भावों से, बीते आवश्यक है,
इस विषाक्त प्रकृति में रह ना, विष पीता हो बचपन.

धर्मशिला से ठोकर लग कर, जागे वह बिरला हो,
अनसूय राम भक्‍त हो, कृष्णा, की गीता हो बचपन.

पर ऐसा होता कम बचपन, आखिर तो बचपन है,
हम चाहें हो वैसा ही क्यों, मनचीता हो बचपन.

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