18 दिसंबर 2018

ज़ि‍दगी का फ़लसफ़ा है (गीतिका)


छंद- मनोरम
पदांत- है
समांत-अफ़ा

ज़ि‍दगी का फ़लसफ़ा है
कुछ वफ़ा है कुछ ज़फा है.

जो नहीं सामर्थ्‍यशाली,
हारता वह हर दफ़ा है.

मत करे इतनी मुहब्‍बत
ज़ि‍दगी तो बेवफ़ा है.
 
वक़्त की हर शै बदलती,
हो अगर नुकसाँ नफ़ा है.

मौत से तो लाज़मी हो,
ज़ि‍दगी से क्‍यों खफा है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें