गीतिका
छंद- कीर्ति (वार्णिक)
मापनी- 112 112 112 2
पदांत- है
समांत- अती
सरदी कम ही लगती है ।
जब धूप नहीं चुभती है ।
तन को कम वस्त्र सुहाते,
जब प्यास घनी लगती है ।
गुलजार सभी महकाती,
जब मंद हवा चलती है ।
मधुमास लगा धरती भी,
जब खूब सजा करती है ।
मधुकोश भरे छलकाती,
कलिका भँवरे तकती है ।
तितली रँगने पर आती,
बगिया बगिया फिरती है ।
चहुँ ओर मिले हरियाली,
लय जीवन को मिलती है ।
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