17 फ़रवरी 2022

करना मत मनमानी

गीतिका 
छंद- विद्युल्‍लेखा (वाचिक)
मापनी- 222 222 222 222 
पदांत- 0 
समांत- आनी
 
गतिरोधों, अवरोधों, की बातें बेमानी । 
सीमा पर तत्‍पर हर, दम रहते सेनानी । 

अनुशासन छूटेगा, आएँगी बाधाएँ,
झूठा ही हकलाता, सच का ना है सानी ।

पहरा हो, पग पग पर, खतरा भी, हो सर पर,
चोरों को, कब ताले, करते जो, है ठानी ।

क्‍या मिट्टी क्‍या सोना, क्‍या हीरा क्‍या पन्‍ना,
घर के भेदी से तो, लंका भी लुट जानी ।

इज्‍जत पाले सच्‍चा, खूँटी टाँगे झूठा,
होती है इस जग में, सबसे ही नादानी ।  

कण कण में बिखरे हैं, बलिदानों के किस्‍से, 

माँ पुजती है पन्‍ना, हाड़ी, लक्ष्‍मी रानी । 

‘आकुल’ अब कर गुजरो, चाहो यदि करना तो,
अवरोधों से डर कर,  करना मत मनमानी । 


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