गीतिका
मापनी- 222 222 222 222
पदांत- 0
समांत- आनी
गतिरोधों,
अवरोधों, की बातें बेमानी ।
सीमा
पर तत्पर हर, दम रहते सेनानी ।
अनुशासन
छूटेगा, आएँगी बाधाएँ,
झूठा
ही हकलाता, सच का ना है सानी ।
पहरा
हो, पग पग पर, खतरा भी, हो सर पर,
चोरों
को, कब ताले, करते जो, है ठानी ।
घर के भेदी से तो, लंका भी लुट जानी ।
इज्जत पाले सच्चा, खूँटी टाँगे झूठा,
होती है इस जग में, सबसे ही नादानी ।
कण कण में बिखरे हैं, बलिदानों के किस्से,
माँ
पुजती है पन्ना, हाड़ी, लक्ष्मी रानी ।
‘आकुल’
अब कर गुजरो, चाहो यदि करना तो,
अवरोधों
से डर कर, करना मत मनमानी ।
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