21 फ़रवरी 2022

पीछे न देखें वीर

 गीतिका

छंद- तोमर

मापनी- 2212 221

अपदांत, समांत- ईर

पीछे न देखें वीर ।

आपा न खोते धीर ।1।

कर्मठ जुझारू लोग,

बनते रहे हैं मीर ।2।

राजा बने हैं रंक,

लुटती रहीं जागीर ।3।

होता समय का फेर,

कहते कई तकदीर ।4।

अकसर सभी वाचाल

फैंकें हवा में तीर ।5।

औषधि जरूरी क्‍योंकि,

हरती रही  है पीर ।6।

करता नहीं जो अर्ज,

बनता न दावागीर ।7।

भरता नहीं जो कर्ज,

फटता उसी का चीर ।8।

‘आकुल’ कहे जो बात

 होती सदा अकसीर ।9।

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