महागीतिका
छंद- दोहा
अपदांत
समांत- आह
कड़वाहट ही दे गया, चुन कर मध्यम राह ।
बचत करे कैसे वही, राग मसानी आह ।
नहीं बचत या टेक्स में, मिली जरा भी छूट,
सेहत पर फोकस किया, लूटी थोड़ी वाह ।
जनता का यह है नहीं, दिखलाए हैं स्वप्न,
नहीं राज को गाँव या शिक्षा की परवाह ।
खूब कमाया साल भर, दे कर झाँसा खूब,
मिली न अब तक नौकरी, बढ़े भ्रष्ट अहि ग्राह ।
गाँवों में अनपढ़ बढ़े, ऑनलाइन का खौफ़,
दिखलाने के दाँत हैं, दी है मात्र सलाह ।
न्याय प्रशासन भ्रष्ट हो, सत्ता हो जब मौन,
शिक्षित, बे'रोजगार तब, होंगे सब गुमराह ।
जहाँ आज भी गाँव से, पानी बिजली दूर,
सुविधाएँ बस नाम की, खैर करे अल्लाह ।
मूलभूत पूरी करें, जरूरतें जो आज,
तभी बढ़ाएँ गाँव में, तकनीकी सुप्रवाह ।
शिक्षित शहरी क्षेत्र में, गाँवों में हैं न्यून,
पहले शिक्षा से करें, गाँवों को आगाह ।
जनसंख्या पर क्यों नहींं, अंतरिम प्रावधान,
जनसंख्या विस्फोट पर, जाती क्यों न निगाह ?
मिला कहीं ना काम तो, भंग हुआ है मोह,
नवपीढ़ी से आजकल, बढ़ने लगे गुनाह
कल्याणी हो हर बजट, मिले तीन को छूट,
शिक्षा-खेती-काम को, करें न और तबाह ।
बजट बनाएँ जन सुलभ, रख सर्वोपरि ध्येय,
महॅगाई की मार से, मुश्किल है निर्वाह ।
(चित्र गूगल/मुक्तक-लोक से साभार )
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