गीत-
(आधार छंद- रजनी)
यह बसंती धूप धरती पे बिखर जाए.
फाग की आहट से’ मौसम भी सँवर जाए.
यह बसंती धूप -------------------
बावरा मन भी करे नर्तन अजानों सा,झूमता गाता फिरे हर सू दिवानों सा,
ढूँढ़ता रंगीनियों को जब जिधर जाए.
यह बसंती धूप -------------------
यूँ पवन हरसू बसंती बह रही हो तो,
मद भरी फूलों की डाली सह रही हो जो,
खुशबू’ हरसिंगार सी साँसों में’ भर जाए.
यह बसंती धूप----------------------.
प्रेम जब मनुहार से आगे निकल जाए.
फाग का दूना मजा तन मन सिहर जाए.
यह बसंती धूप------------------------
अब बसंती हो प्रकृति रंगीन हो मौसम,
रंग उत्सव यूँ मने दुख दर्द भूलें हम.
और यूँ खुशरंग हो जीवन ठहर जाए.
यह बसंती धूप-----------------------
-आकुल
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