5 फ़रवरी 2022

यह बसंती धूप धरती पे बिखर जाए

 गीत-

(आधार छंद- रजनी)

यह बसंती धूप धरती पे बिखर जाए. 

फाग की आहट सेमौसम भी सँवर जाए.

यह बसंती धूप ------------------- 

बावरा मन भी करे नर्तन अजानों सा, 

झूमता गाता फि‍रे हर सू दिवानों सा,  

ढूँढ़ता रंगीनियों को जब जिधर जाए.

यह बसंती धूप ------------------- 

यूँ पवन हरसू बसंती बह रही हो तो, 

मद भरी फूलों की डाली सह रही हो जो,

खुशबूहरसिंगार सी साँसों मेंभर जाए.

ह बसंती धूप----------------------.

मन रहे काबू में’ कैसे यार मिल जाए,

प्रेम जब मनुहार से आगे निकल जाए. 

फाग का दूना मजा तन मन सिहर जाए.

यह बसंती धूप------------------------

अब बसंती हो प्रकृति रंगीन हो मौसम,

रंग उत्‍सव यूँ मने दुख दर्द भूलें हम.   

और यूँ खुशरंग हो जीवन ठहर जाए. 

यह बसंती धूप-----------------------

-आकुल


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