7 फ़रवरी 2022

महकें प्रसून पीले

गीतिका 
छंद- ईश (वार्णिक)
विधान/गण- सगण जगण गुरु गुरु
मापनी- 112 121 22

महकें प्रसून पीले 
दहकें कनेर पीले 

सरसों कहीं खिली है 
भुनगे कहीं हठीले 

कलियाँ कई खिलेंगी, 
भँवरे लगे छबीले । 

 तितली यहीं रँगेंगी, 
 निज पंख भी रँगीले 

 गिरने लगीं निमोरी, 
 झड़ बेर भी रसीले । 

 दिन आ गए बसंती 
 अब फाग के नशीले। 

 घर में सजा रँगोली,
दिन चार मस्त जी ले ।।

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