छंद- ईश (वार्णिक)
विधान/गण- सगण जगण गुरु गुरु
मापनी- 112 121 22
महकें प्रसून पीले
दहकें कनेर पीले
सरसों कहीं खिली है
भुनगे कहीं हठीले
कलियाँ कई खिलेंगी,
भँवरे लगे छबीले ।
तितली यहीं रँगेंगी,
निज पंख भी रँगीले
गिरने लगीं निमोरी,
झड़ बेर भी रसीले ।
दिन आ गए बसंती
अब फाग के नशीले।
घर में सजा रँगोली,
दिन चार मस्त जी ले ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें