कोयल का घर फोड़ कर, घर घर ढूँढ़े प्रीत ।
अब तक तो कोई नहीं, मिला काक को मीत ।।
2
बड़ बड़ बातें बोल कर, काक घटाते मान ।
चाहे चतुर सुजान हैं, नहीं मिले सम्मान ।।
3
दशाह घाट श्मशान या, श्राद्ध पक्ष में श्रेय ।।
मिले काकश्री को सदा, समझो उसे न हेय ।
4
काक चेष्टा भले ही, जग में हुई बखान ।
भूला जग अब तक नहीं, सीता का अपमान ।।
5
गो-ब्राह्मण बिन कनागत, दशा(ह) घाट बिन काक ।
सद्गति बिन उत्तर करम, जीवन ना बिन नाक ।।
6
कागा महिमा जान लो, पंडित काकभुशुंड ।
पर जयंत को भी मिला, एक आँख का दंड ।।
7
कागा की परिवार से, कभी न देखी प्रीति ।
औघड़ सा घूमे सदा, कौन सिखाए रीति ।।
8
कोयल बुलबुल कब लड़ें, करें न अतिक्रम, क्लेश ।
कागा का भी घर बसे, हो यदि चेष्टा लेश ।।
9
मादा कागा दुखी है, कागा की मति देख,
नहीं चाह कर संग में, रहे भाग्य के लेख ।।
10
कहीं न क्यों पिक जा छिपे, लेता काक निकाल।
ऐयारी में काक की, कोई नहीं मिसाल ।
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