छंद- विद्युल्लेखा (वार्णिक)
मापनी- 222 222 (मगण मगण)
पदांत- हैं, समांत- ओते
कर्मों के न्योते हैं ।पाते हैं खोते हैं ।
जो आए संसारी,
कर्मों को बोते हैं
कोताही के मारे,
बोझा ही ढोते हैं।
रूखी सूखी छोड़े,
भूखे ही सोते हैंजो दु:खों को सेते,
देखे ही रोते हैं ।
पापी भ्रष्टाचारी,
खाते ही गोते हैं,
गंगा में जा सारे,
पापों को धोते हैं।
जीने दें, जीएँ भी,
न्यारे ही होते हैं ।रेखाएँ भाग्यों की
हाथों में पोते हैं
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