16 फ़रवरी 2022

कर्मों के न्‍योते हैं

 गीतिका

छंद- विद्युल्‍लेखा (वार्णिक)

मापनी- 222 222 (मगण मगण)  

पदांत- हैं, समांत- ओते

कर्मों के न्‍योते हैं ।

पाते हैं खोते हैं ।

जो आए संसारी,

कर्मों को बोते हैं

कोताही के मारे,

बोझा ही ढोते हैं।

रूखी सूखी छोड़े,

भूखे ही सोते हैं

जो दु:खों को सेते,

देखे ही रोते हैं ।

पापी भ्रष्‍टाचारी,

खाते ही गोते हैं,

गंगा में जा सारे,

पापों को धोते हैं।

जीने दें, जीएँ भी,

न्यारे ही होते हैं ।

रेखाएँ भाग्‍यों की

हाथों में पोते हैं

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