गीतिका
गणतंत्र दिवस भी हुआ आज, वासंती है।
घर-घर फहर रहा राष्ट्रीय, ध्वज अपना,
हर गली गाँव, हर घर समाज, वासंती है।2।
खेत लहलहा रहे चारसू, सरसों की,
चादर फैली नभ पर सिराज, वासंती है।3।
हुई फाग की आहट जाने को है शरद,
मौसम का भी अब मिजाज, वासंती है।4।
गाओ गीत सुमंगल पहना, कर ‘आकुल’
गणतंत्र दिवस को आज ताज, वासंती है।5।
-आकुल
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