गीतिका
छंद- विशेषिका
विधान- प्रति चरण 20 मात्रा, चरणांत सगण (112)
पदांत- रहे,
विधान- प्रति चरण 20 मात्रा, चरणांत सगण (112)
पदांत- रहे,
समांत- अंग
मित्र सदा जीवन में बस
संग रहे।
तुला संग सदैव ज्यों पासंग रहे।
तुला संग सदैव ज्यों पासंग रहे।
सँभलो करते जिह्वा को
लप-लप जो,
जहर सदैव उगलते सारंग रहे।
जहर सदैव उगलते सारंग रहे।
मानव में दो रंग श्वेत-श्यामल
ही,
शेष रंग सदा प्रकृति आसंग रहे।
शेष रंग सदा प्रकृति आसंग रहे।
है अभिशाप एक तंगी
में रहना,
अकसर ही जीवन में भ्रूभंग रहे।
अकसर ही जीवन में भ्रूभंग रहे।
रह कर देखा एकाकी
‘आकुल’ ने,
करो बचत गुजर-बसर ना तंग रहे।
करो बचत गुजर-बसर ना तंग रहे।
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