गीतिका
छंद- शृंगार
विधान- आदि त्रिकल(12/21)-द्विकल(11/2), अंत त्रिकल (21 अनिवार्य)
समांत- आर.
बना मन,
ऐसा इक, संसार।
रहे बस सिर्फ प्यार ही प्यार।1।
हृदय में, हो दिन- रात उमंग,
बीत जाएँ, यूँ ही,
दिन चार।2।
झूठ से, नर्क न,
बनता स्वर्ग,
सत्य जीवन, का हो,
आधार।3।
प्यार में हो न, छद्म,
छल और,
कभी भी, कहीं नहीं
व्यापार।4।
हो न, मतभेद और
मनभेद,
भेदना, मन हो,
कर मनुहार।5।
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