8 मई 2023

कुछ सोरठे

मूल छंद सोरठे
कैसा भी हो भेष, मौत ढूँढ़ती जिन्‍दगी।
ले जाती अवशेष, बोझ धरा पर जब बने ।
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प्रभु को करिए याद, भोजन से पहने सदा।
इससे बड़ा प्रसाद, जीवन में मिलता नहीं।
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अनपढ़ भट्टाचार्य, जीवन में मिलते कई।
गुनना भी अनिवार्य, पढ़ना ही काफ़ी नहीं।
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उभय चरण तुकान्‍त सोरठे
जीवन मार्ग प्रशस्‍त, मात-पिता-गुरु ही करें ।
जीवन हो आश्‍वस्त, वरद हस्‍त जो ये धरें ।1।
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खोता घर का चैन, रहे न घर में एकता ।
अकर्मण्य दिन रैन, दिवा स्‍वप्‍न ही देखता ।2।
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वो पिछड़ा दिन-रात, समय संग चलता नहीं ।
बिना बिगाड़े बात, बाधक कब रहता कहीं ।3।
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ना रहता पाबंद, अनुशासन रखता नहीं ।
हो न चाक-चौबंद, धोखा खाता है कहीं ।4।

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