मूल छंद सोरठे
कैसा भी हो भेष, मौत ढूँढ़ती जिन्दगी।
ले जाती अवशेष, बोझ धरा पर जब बने ।
-0-
प्रभु को करिए याद, भोजन से पहने सदा।
इससे बड़ा प्रसाद, जीवन में मिलता नहीं।
-0-
अनपढ़ भट्टाचार्य, जीवन में मिलते कई।
गुनना भी अनिवार्य, पढ़ना ही काफ़ी नहीं।
--00--
उभय चरण तुकान्त सोरठे
जीवन मार्ग प्रशस्त, मात-पिता-गुरु ही करें ।
जीवन हो आश्वस्त, वरद हस्त जो ये धरें ।1।
-0-
खोता घर का चैन, रहे न घर में एकता ।
अकर्मण्य दिन रैन, दिवा स्वप्न ही देखता ।2।
-0-
वो पिछड़ा दिन-रात, समय संग चलता नहीं ।
बिना बिगाड़े बात, बाधक कब रहता कहीं ।3।
-0-
ना रहता पाबंद, अनुशासन रखता नहीं ।
हो न चाक-चौबंद, धोखा खाता है कहीं ।4।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें