मापनी-
212 212 212
212
समांत-
आनी
पदांत’
नहीं
(अरुण
छंद)
जिंदगी
ने कभी हार मानी नहीं
मौत
ने की कभी महरबानी नहीं
मौत
ने ठहर के जिंदगी को सुना
आदमी
ने कभी बात मानी नहीं
वक्त
ने खूब उसको दिये तोहफे
मात्र
बचपन बुढ़ापा जवानी नहीं
वह
गुरूर न करे काश जीते हुए
हौसलों
से कभी छेड़खानी नहीं
जिंदगी
में करोगे वही है अमर
मौत
जिस्मानी’ दी है रू’हानी नहीं.
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