(दोहा गीतिका)
यह पथ है नववर्ष का, जुट जाओ नि:स्वार्थ
जीवन पथ उत्कर्ष का, करने को पुरुषार्थ.
राग द्वेष सब भूल कर, संग मित्र परिवार,
कर गुजरो कुछ अनछुआ, बिन कोई हितस्वार्थ.
सब अपने सँग हैं तभी, है वसुधैवकुटुम्ब,
कुछ ऐसा कर जाइये, हो हर' कृत्य कृतार्थ.
अकर्मण्य को भी लिए, संग रखें यह सोच,
होगा कुछ भवितव्य ही, उसका कोई स्वार्थ.
रामायण से सीखिए, मर्यादा की सीख,
महासमर का पर्व हर, कर्म प्रवण निहितार्थ.
वेद पुराणों की धरा, गंगा यमुना तीर,
सभी धर्म समभाव को, करते हैं चरितार्थ.
श्रीकृष्णशरणं मम भज, रे मानव दिड्.मूढ़,
जीवन को तू धन्य कर, चल पथ पर सत्यार्थ.
यह वह भारत भूमि है, गीता जहाँ वरेण्य,
है प्रधान बस कर्म ही, सीखा है जब पार्थ.
हर युग में बस कर्म से, जीता है विश्वास.
अवतारों ने भी लिया, जन्म हेतु परमार्थ.
कर दें स्थापित सभी, जीवन मूल्य सधर्म,
कर्मों से बन जाइये, वर्द्धमान, सिद्धार्थ.
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