नवगीत
कुहरे में दुबके सूरज को
सुबह किया सलाम.
सुबह किया सलाम.
बया झाँकती गोख से
झूला गीला ओस में
पंछी सारे दुबक रहे
आस-पास पड़ौस में
झूला गीला ओस में
पंछी सारे दुबक रहे
आस-पास पड़ौस में
रजत कटोरे से सूरज को
सुबह किया सलाम.
सुबह किया सलाम.
देख विवश सूरज को खग
चहक रहे डेरे में
विवश बाथ भरने को वे
गगन ढका कुहरे में
चहक रहे डेरे में
विवश बाथ भरने को वे
गगन ढका कुहरे में
मोती ओस कणों वाली
सुबह को किया सलाम.
सुबह को किया सलाम.
पैर रुक रहे ओस देख
पहने थे जो मोजे
लोग कह रहे ओस देख
सूरज के भी रोजे़
पहने थे जो मोजे
लोग कह रहे ओस देख
सूरज के भी रोजे़
अलसभोर में जागे जग को
सुबह किया सलाम.
सुबह किया सलाम.
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