14 मार्च 2017

पाँच मुक्‍तक



 1
कृतज्ञ
कोई उपकार करे अवश्‍य उसका कृतज्ञ होना चाहिए.
कृतज्ञ हों पर कृतज्ञता का प्रदर्शन भी  होना चाहिए.
जीवन में अधिकार का प्रयोग करने के लिए बनें निष्‍पक्ष,   
निष्‍पक्ष हों पर निष्‍पक्षता का प्रदर्शन भी होना चाहिए.

2
कृतघ्‍न
अभिमान के वशीभूत जो उपकार न माने कृतघ्‍न कहलाता है.
अभिमान से पराभूत जो अधिकार न माने कृतघ्‍न कहलाता है.
मानवता के लिए जो शत्रुओं को संहारे कहलाता है शत्रुघ्‍न,
स्‍वाभिमान से अभिभूत जो संस्‍कार न माने कृतघ्‍न कहलाता है.

3
कृतज्ञता
नमन करो तुम कृतज्ञता से जनक, गुरु, ईश्‍वर का.
तदुपरांत तुम नमन करो धरा, देश और घर का.
अपने और पराये का मत लाओ मन में भाव,
बन कृतज्ञ तुम लाभ प्राप्‍त कर पाओगे अवसर का.

4
जिन्‍दगी
जो चाहिए मौन दिये जाती है जि‍न्‍दगी,
मौत ही है हर बार माँगती है जिन्‍दगी.  
बस नज़रिया है अपना, जमाने को देखो,
मौन है वह और जिये जाती है जिन्‍दगी.'

5
जिन्‍दगी
जिन्‍दगी को फिर सजायें,
खुशी को पल पल चुरायें,
हवायें चलें कैसी भी,
बस हमेशा मुसकुरायें.

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