आओ
पुन: सृष्टि में नव ऊर्जा का संचार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
मृताशौच वैराग्य सदृश हम पर्व मनाते हैं.
दिन दूने और रात चौगुने सगर्व मनाते हैं.
प्रकृति, तन, मन, धन, चारों ही मानव की हैं दूषित,
हम सभी, पर्व नहीं सृष्टि का उत्सर्ग मनाते हैं.
महती आवश्यकता है अब जगती से प्यार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
जब तब दावानल, बड़वानल को जलते देखा है.
रण की विभीषिका में दल-बल को जलते देखा है.
यह कैसा संतुलन है प्रकृति के द्वारा सृष्टि का.
अख्ण्ड ज्योति सा जठरानल को जलते देखा है.
माँ से करते हैं वैसा अब वसुमती से प्यार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
फिर भी आता है बसंत, आती होली दीवाली.
वृक्षों पर जीवन उगता, खेतों में हरियाली.
वर्षा, गरमी सर्दी पतझड़ की रुत भी आती है पर,
मानव वक्रदृष्टि से न सुधरी सृष्टि की बदहाली.
भूतो न भविष्यति ऐसा अब भवती से प्यार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
मृताशौच वैराग्य सदृश हम पर्व मनाते हैं.
दिन दूने और रात चौगुने सगर्व मनाते हैं.
प्रकृति, तन, मन, धन, चारों ही मानव की हैं दूषित,
हम सभी, पर्व नहीं सृष्टि का उत्सर्ग मनाते हैं.
महती आवश्यकता है अब जगती से प्यार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
जब तब दावानल, बड़वानल को जलते देखा है.
रण की विभीषिका में दल-बल को जलते देखा है.
यह कैसा संतुलन है प्रकृति के द्वारा सृष्टि का.
अख्ण्ड ज्योति सा जठरानल को जलते देखा है.
माँ से करते हैं वैसा अब वसुमती से प्यार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
फिर भी आता है बसंत, आती होली दीवाली.
वृक्षों पर जीवन उगता, खेतों में हरियाली.
वर्षा, गरमी सर्दी पतझड़ की रुत भी आती है पर,
मानव वक्रदृष्टि से न सुधरी सृष्टि की बदहाली.
भूतो न भविष्यति ऐसा अब भवती से प्यार करें.
सृष्टि को, प्रदूषण मुक्त करें, धरती से प्यार करें.
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