गीतिका
समांत- आओ
पदांत- तो होली है
होली रंगों का त्योहार है रँग जाओ तो होली है.
रँग कर ही रंगों की महिमा को
गाओ तो होली है.
बिना रँगे जीवन का रँग भी
कहाँ ठहरता है तन पर,
जीवन में हर पल खुशियों के
रँग लाओ तो होली है.
भंग के या फिर रंग के जोश
में छेड़छाड़ के डर से या
युवा शक्ति की जंग को' पल भर
सह पाओ तो होली है.
मन का मैल छुड़ा कर तन को
रँगने का होली है पर्व,
जा समीप नाजुक रिश्तों को रँग आओ तो होली है.
यही पर्व है इक रँग मुँह पर
मलने का सौभाग्य मिले,
’आकुल’ मन की बात मीत तक पहुँचाओ तो होली है.
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