22 मार्च 2017

ऐ कविता.....


विश्‍व कविता दिवस पर कविता पर एक नवगीत 

ऐ कविता तू अब खुश हो जा.
माँग न मन्‍नत
मत रख रोज़ा.

घर का मीठा जैसे सीरा
रत्‍नों में हो जैसे हीरा
सबका सपना अपना सुख हो
क्‍या कबीर क्‍या तुलसी मीरा.

तू ही मिली चले जिस पथ पर
जिसने तुझको 
जब भी खोजा.

कविता तू शब्‍दों का गहना
कुल किरीट है बेटी बहना
जैसा चाहा पाला पोसा
कितने दिन की नींद बिछौना.

तेरा तो अपना साहिल है
उनका तो बस 
अपना मौजा.

चौपाई, चौपई क्‍या ताँका
सब में लगा हुआ है टाँका
हैं निबन्‍धनी ग़ज़ल गीतिका
रूप मगर तेरा है बाँका.

तूने उनको दिये उजाले
तू अब भी है 
शमे-फरोज़ा.

मधुकर प्रीत बहारों जैसी
बरसाती बौछारों जैसी
तू छंदों में जैसे मुक्‍तक
कविता तू त्‍योहारों जैसी.

नारी रूप दिया निसर्ग ने
अब तू स्‍वर्ग 
सरीखी हो जा.

ऐ कविता तू
अब खुश हो जा.

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