छंद - सिन्धु
मापनी- 1222 1222 1222
पदांत- तो,
समांत- आओ,
अगर तुम दो कदम भी साथ आओ तो
अगर तुम हमसफर बन कर बताओ तो.
सफर की मुश्किलें आसान कर दोगी,
अगर तुम हाथ अपने भी बढ़ाओ तो.
खिलेंगे फूल तुम जो हाथ धर दोगी,
अगर तुम बागबाँ बन कर खिलाओ तो.
अमावस में चँदनिया रात कर दोगी,
अगर तुम चाँद बन कर घर बसाओ तो
मुझे तूफाँ न आने की खबर दोगी,
अगर तुम प्रीत मलयानिल बहाओ तो
धरा पर स्वर्ग का निर्माण कर दोगी,
अगर तुम प्रीत का अमृत पिलाओ तो.
नहीं लगता बिना शुंगार घर 'आकुल' ,
अगर तुम घर समझ के घर सजाओ तो.
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