पदांत- हर आदमी
समांत- अबी
हो गया क्यों अजनबी हर आदमी,
सो गया क्यों मजहबी हर आदमी
वह पढ़ा है वह गुना है देश में,
नहीं’ बना क्यों मकतबी हर आदमी.
खूब धन दौलत कमा के बावला,
वह पढ़ा है वह गुना है देश में,
नहीं’ बना क्यों मकतबी हर आदमी.
खूब धन दौलत कमा के बावला,
बन गया क्यों मतलबी हर आदमी.
आँख हैं आकाश पर अब जीत के,
हो गया क्यों मनसबी हर आदमी.
नाम ‘आकुल’ का जुड़ा है वतन से,
बस जुड़े अब ए नबी हर आदमी.
आँख हैं आकाश पर अब जीत के,
हो गया क्यों मनसबी हर आदमी.
नाम ‘आकुल’ का जुड़ा है वतन से,
बस जुड़े अब ए नबी हर आदमी.
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