गीतिका
छंद- सार्द्ध माणवक (वार्णिक)
मापनी- 2112 2112 2112
पदांत- लगा
समांत-
अने
भूमिहरों का अब ना शोषण हो।
दीन विहीनों सब का ओरण हो।
जो उपयोगी न रहें वृक्ष कटें,पौध कहीं एवज में रोपण हो।
शिक्षित हों खत्म करें जीवन में ,
भ्रष्ट कुकर्मों का भी जो रण हो।
गो कुल संवर्धन के केंद्र खुलें,
गोरस से गोबर से पोषण हो ।।
काम मिले क्यों मन शैतान बने,
ध्येय मिले जीवन में तोषण हो ।
संस्कृति का वैभव आदर्श बने,
पर्व मने केसरिया तोरण हो।
राष्ट्र रहे गौरवशाली जग में,
सूरज सा ‘आकुल’ आरोहण हो।
ओरण- मूल शब्द ‘अरण्य‘ से है। यह मरुक्षेत्र में मरुउद्यान विकसित करने के स्वावलंबन एवं आत्मनिर्भरता में क्रांतिकारी परिवर्तन का सूत्रपात करने के अर्थ में लिया जाता है।
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