31 जनवरी 2022

अहंकार करना न कभी भी

 गीतिका

छंद- विष्‍णुपद सम मात्रिक

पदांत- में

समांत- आनी

मच्‍छर कभी न घुस पाता है, मच्‍छरदानी में ।

भिन भिन करता  मारा जाता, है नादानी में ।  

अहंकार करना न कभी भी, अपनी प्रतिभा पर,

डूबा सदा भार से अपने, पत्‍थर पानी में ।

शोर करे सिक्‍का कागज की, मुद्रा चुप रहती । 

मूल्‍य बढ़े तो अंकुश लगता, जाता बानी में ।  

चल तू कभी-कभी अंधा बन, मुँह को भी सी कर,

जैसे चक्‍कर बैल लगाता, अंधा  घानी में ।

कई दुखी हैं सुखी देख कर दुनिया दूजे की,

जीना सार्थक कर आया इस दुनिया फानी में । 

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