गीतिका
छंद- माधुरी
मापनी- 221 221 221 22
पदांत- का
समांत- अरने
क़िस्मत बदलने के लिए, शुरुआत करने का ।
अवरोध आएँगे पहल,
करना जरूरी है,
बच कर निकलना है, नहीं है वक़्त डरने का ।
कर्तव्य पथ पर हौसला भर,
जा रहे बढ़ते,
कूटावपातों, खाइयों को, आज
भरने का ।
आसान होती है नहीं,
पाना सफलताएँ,
देता नहीं बाज़ार मौक़ा, हाथ धरने का ।
मौक़ें मिले तो चूकना मत,
तुम कभी ‘आकुल',
ज़हरी पतंगों के कभी भी, पर कतरने का ।
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