गीतिका
छंद- अभीर/अहीर
पदांत- 0, समांत- आल
जय गणेश गोपाल।
मुरलीधर हे लाल ।
शोभित मयूर पंख
शीश किरीट प्रवाल।
शैलसुता के पुत्र
तुम शिवपूत निहाल।
दंडपाणि ले वेणु,
शूल त्रिपुड सुभाल।
ऋद्धि-सिद्धि के देव,
सब के हो प्रतिपाल।
अंकुश कर दल-मूष,
बने कृषक संघाल।
गजवदन प्रथम पूज्य,
बने प्रबुद्ध विशाल।
‘आकुल’ भजे गणेश,
पूजे सांझ सकाल ।
संघाल (संघेला)- मित्र, सकाल- सवेरे
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