10 नवंबर 2022

हाथ क्‍यों फिर दर्द में धरते नहीं

गीतिका
छंद- पियूषवर्ष   
मापनी- 2122 2122 212 
पदांत- नहीं 
समांत- अरते 

 
हाथ क्‍यों फिर दर्द में धरते नहीं।    
दर्द से क्‍या तुम भी गुजरते नहीं।  
 
कल हवाओं में भरा विष था भले,  
बाग में क्‍या फूल अब झरते नहीं।
 
 
इक तमाचा था समय का आदमी,
क्‍यों समय से आज भी डरते नहीं।
 
कर्म हो निष्फल भरा हो स्‍वार्थ से,
कर्मनाशा में कभी तरते नहीं। 
 
आदमी ही आदमी का शत्रु था,
दंभ ना होता अगर मरते नहीं।
 
प्रेम बिन जीवन सँवर जाते अगर, 
नाम रिश्‍तों के कभी धरते नहीं।
 
पाल रिश्‍तों को, सुखनवर दूर तक,  
स्‍वप्‍न में भी हाथ से, सरते नहीं । 
 
अब समय की क्‍यों प्रतीक्षा मान्‍यवर, 
क्यों सृजन कोई नया करते नहीं।

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