छंद- राधेश्याम चौपाई
विधान- मात्रा भार 32. 16, 16 पर यति आरंभ/ अंत गुरु से.
यदि त्रिकल से आरंभ तो उसके बाद त्रिकल आवश्यक.
समांत- अंत्र
कुछ खोकर पाना कुछ पा कर, कुछ खोना जीवन मंत्र समझ।
युग-युग से जीवन के विकास, में दुहराता यह तंत्र समझ ।
दुख, संकट, भोग, मोह, माया, हिंसा अरु लोभ, लालसा भी,
तन-मन-धन करें प्रभावित जब, संवेगों का षड्यंत्र समझ ।
हैं नियम-विनियम व संविधान, से पोषित राष्ट्र हमारा है,
जल-थल-नभ की सीमाओं की, संप्रभुता ही गणतंत्र समझ ।
हो प्रजा सुखी, सुख-सुविधा हो, हो सर्वधर्म समभाव निहित,
तब सही मायने राष्ट्र जगत् में, अपना है जनतंत्र समझ ।
अधिकारों, कर्तव्यों, उत्तर-दायित्वों, संस्कारों से जब,
मिलती ऊर्जा इंसानों को, तब ‘आकुल’ राष्ट्र स्वतंत्र समझ।
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