जंगल में हम घूमे खूब ।
वहाँ नहीं थी कोमल दूब ।।रस्ते में बिखरे थे पत्ते।
पगडंडी से कुछ थे रस्ते ।।
पेड़ों की ना जात जमात ।
झूम रहे थे सब मिल साथ ।।खुला कहीं मैदान नहीं था ।
पर जंगल सुनसान नहीं था ।।कलरव करते पक्षी देखे ।
हिरण चौकड़ी भरते देखे ।।कहीं शेर की सुनी दहाड़ ।
कहीं हाथियों की चिंघाड़ ।।फल फूलों से पेड़ लदे थे।
खाने को तब मन ललचे थे।।तरह तरह के बंदर देखे ।
पंछी सुंदर सुंदर देखे ।।
दरियाई घोड़ा भी देखा ।
खाकी कठफोड़ा भी देखा ।।बब्बर शेर, तेंदुआ चीता ।
सैर करी जंगल की जबसे ।
सोच रहा हूँ जाने कब से ।।कितने है स्वच्छंद यहाँ सब ।
चिड़ियाघर हो बंद सभी अब ।।
चिड़ियाघर में कैद रहेंगे ।
यहाँ सभी स्वच्छंद फिरेंगे
।।
इन्हें मिले आजादी ज्यादा ।
अभयारण्य बनाएँ ज्यादा ।।
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