8 नवंबर 2022

जंगल की सैर

जंगल में हम घूमे खूब ।

वहाँ नहीं थी कोमल दूब ।। 
 
रस्‍ते में बिखरे थे पत्‍ते।
पगडंडी से कुछ थे रस्‍ते ।।

पेड़ों की ना जात जमात ।

झूम रहे थे सब मिल साथ ।।

खुला कहीं मैदान नहीं था ।

पर जंगल सुनसान नहीं था ।।

कलरव करते पक्षी देखे ।

हिरण चौकड़ी भरते देखे ।।

कहीं शेर की सुनी दहाड़ ।

कहीं हाथियों की चिंघाड़ ।।

फल फूलों से पेड़ लदे थे।

खाने को तब मन ललचे थे।।

तरह तरह के बंदर देखे ।

पंछी सुंदर सुंदर देखे ।।

दरियाई घोड़ा भी देखा ।

खाकी कठफोड़ा भी देखा ।।

बब्‍बर शेर, तेंदुआ चीता ।

उन्‍हें ढूँढ़ते दिन भर बीता ।।

सैर करी जंगल की जबसे ।

सोच रहा हूँ जाने कब से ।।

कितने है स्‍वच्‍छंद यहाँ सब ।

चिड़ि‍याघर हो बंद सभी अब ।। 

चिड़ि‍याघर में कैद रहेंगे । 

यहाँ सभी स्‍वच्‍छंद फिरेंगे ।।   

इन्‍हें मिले आजादी ज्‍यादा ।

अभयारण्‍य बनाएँ ज्‍यादा ।।

 

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