प्रदत्त मापनी- 1222 1222 122
आधार छंद- सुमेरु
पदांत- होगी
नहीं नारी अगर बेपीर होगी ।
नई पीढ़ी नहीं तब वीर होगी ।
जहाँ लूटें बगीचे बागबाँ ही,
वहाँ फूटी हुई तकदीर होगी ।
वहाँ फूटी हुई तकदीर होगी ।
भले ही चाँद को चाहें हजारों,
मगर दिन चार ही जागीर होगी ।
मगर दिन चार ही जागीर होगी ।
जहाँ अपनों ने' उसको दर्द बाँटे,
कहीं लैला कहीं वह हीर होगी ।
कहीं लैला कहीं वह हीर होगी ।
कई किस्से सुने हैं शादमानी*,
महकमे हैं जहाँ वह मीर होगी ।
महकमे हैं जहाँ वह मीर होगी ।
कहीं खोया कहीं पाया बहुत है,
सही में साफ अब तसवीर होगी ।
सही में साफ अब तसवीर होगी ।
नहीं ‘आकुल’ भरोसा छोड़ना बस,
मुहब्ब्त में कभी तासीर होगी ।
मुहब्ब्त में कभी तासीर होगी ।
*शादमानी- खुशी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें